Saturday, 11 November 2017

अमिताभ बच्चन ने अपने करियर की शुरुआत कौनसी फिल्म से की

रत के ही नहीं विश्व के लोकप्रिय अभिनेता में से एक अमिताभ बच्चन जो की आज हर भारतीय के दिल में बसे हुए है ।
अमिताभ बच्चन बॉलीवुड के सबसे प्रसिद्ध अभिनेताओं में से एक है ।
अमिताभ बच्चन का जन्म कब हुआ 
अमिताभबच्चन का जन्म 11 अक्टूबर 1942 को हुआ है ।
अमिताभ बच्चन का जन्म कहाँ हुआ है
अमिताब बच्चन का जन्म उतरप्रदेश के इलाहाबाद में हुआ ।
अमिताभ बच्चन ने अपने करियर की शुरुआत कौनसी फिल्म से की था
अमिताभ बच्चन ने अपने करियर की शुरुआत सात हिन्दुस्तानी फिल्म के सात कलाकारों में एक कलाकार के रूप में की थी ।
सात हिन्दुस्तानी फिल्म का निर्देशन किसने किया था
सात हिन्दुस्तानी फिल्म का निर्देशन ख्वाजा अहमद ने इस फिल्म को निर्देशित किया था ।
सात हिन्दुस्तानी फिल्म में अमिताभ बच्चन के साथ और कौनसे कलाकारों ने काम किया था
सात हिन्दुस्तानी फिल्म में अमिताभ बच्चन के साथ हिंदी और बांगला अभिनेता उत्पल दत्त और जलाला आगा ने भी काम किया था ।
सात हिन्दुस्तानी ने अधिक कमाई नहीं कर पायी परन्तु इस फिल्म ने फ़िल्मी जगत को एक अनमोल उपहार सौंपा जिनका नाम आज हर किसी के जुबान पर है ।
अमिताब बच्चन ने अपने अभिनय से सबको प्रभावित किया और उन्होंने अपने जीवन में कई सारी हिट फिल्मे भी दी ।
अमिताभ बच्चन के जन्मदिन पर उनको सभी भारतवासियों की तरफ से शुभकामनाये ।
आज अमिताभ बच्चन सामाजिक कार्यो में बढ़ चदकर हिस्सा ले रहे है देश के लिए उचित योगदान भी दे रहे है ।
अमिताभ बच्चन आज पुरे भारत देश के लिए गर्व है ।

Wednesday, 25 October 2017

नौबल पुरस्कार भारतीय जाने कब और किस क्षेत्र में मिला था

नोबल पुरस्कार आज विश्व में सबसे बड़े सम्मान में से एक है ।

इसे पाना न केवल स्वयं के लिए अपितु पुरे देश के लिए गर्व की बात है ।

नोबल पुरस्कार विजेता सुब्रमन्यन चंद्रशेखर का आज उनके योगदान को कोई भी नहीं भूला सकता है ।

नोबल पुरस्कार विजेता सुब्रमन्यन चंद्रशेखर का जन्म कब और कहाँ हुआ था

नोबल पुरस्कार विजेता सुब्रमन्यन चंद्रशेखर का जन्म 19 अक्टूबर 1910 को हुआ था ।

नोबल पुरस्कार विजेता सुब्रमन्यन चंद्रशेखर का जन्म लाहौर भारत में हुआ था ।

आज़ादी से पहले लाहौर भारत का हिस्सा था ।

सुब्रमन्यन चंद्रशेखर को नोबल पुरस्कार कब मिला था

सुब्रमन्यन चंद्रशेखर को नोबल पुरस्कार वर्ष 1983 में मिला था ।

सुब्रमन्यन चंद्रशेखर को नोबल पुरस्कार किस क्षेत्र में मिला था

सुब्रमन्यन चंद्रशेखर को नोबल पुरस्कार भौतिकी के क्षेत्र में उनकी खोज के लिए मिला था ।

सुब्रमन्यन चंद्रशेखर को कौन कौन से प्रसिद्ध पुरस्कार मिले थे और यह सम्मान कब मिले थे

सुबरमणयन चंद्रशेखर को निम्न पुरस्कार मिले ।

नेशनल मैडल ऑफ़ साइंस यह पुरस्कार 1967 में मिला था ।

पद्म विभूषण पुरस्कार सुबरमणयन चंद्रशेखर को 1968 में मिला था ।

कोपले मैडल सुबरमणयन चंद्रशेखर को 1984 को मिला था ।

इस तरह चंद्रशेखर सुबरमणयन ने ना केवल अपना बल्कि पुरे भारत का नाम विश्व स्तर में प्रसिद्ध किया ।

Saturday, 14 October 2017

भारत में वायुसेना दिवस कब मनाया जाता है

भारत देश की तीनो सेनाओ ने भारत देश का मान हमेशा बढ़ाया है । हमेशा ही भारत देश को गौरवान्वित किया है ।

भारत देश की तीनो सेनाओं में से एक भारत की वायुसेना ने भी देश की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी । आगे भी ऐसा करते रहेंगे ।

भारत में वायुसेना दिवस कब मनाया जाता है

भारत में वायुसेना दिवस 8 अक्टूबर को मनाया जाता है ।

हर वर्ष 8 अक्टूबर को वायुसेना अपना वायुसेना दिवस मनाती है और इस दिन कई रोमांचक कार्यक्रम वायुसेना द्वारा प्रस्तुत किये जाते है ।

भारतीय वायुसेना का मुख्य कार्य क्या है

भारतीय वायुसेना के वैसे तो कई सारे कार्य है परन्तु मुख्य कार्य है कि भारत देश के लिए वायु चौकसी करना ,वायु युद्ध और वायु सुरक्षा इत्यादि कार्य करना ही प्रमुख कार्य है ।

भारतीय वायुसेना की स्थापना कब हुई थी

भारतीय वायुसेना की स्थापना 8 अक्टूबर 1932 को की गयी थी ।

हर वर्ष 8 अक्टूबर को भारत में वायुसेना दिवस मनाया जाता है और इस दिन भारतीय वायुसेना अपने कई सारे हेरतंगेज प्रदर्शन करती है ।

हमारे देश की सेना के जवानो ने हर समय अपने प्राणों से ज्यादा देश की रक्षा और देश के मान को पहले रखा है ।

भारत की रक्षा के लिए अपने प्राणों की परवाह किये बिना भारत देश के लिए अपने प्राणों का बलिदान देने वाले उन सभी भारतीय को हमारा नमन है ।

भारतीय सेना हमेशा से ही हर भारतीय का गर्व रही है ।

भारतीय सेना भारत की हर कठिन परिस्थिति में डटकर उस समस्या का सामना करती है और उस कठिनाई को हल भी करती है ।

भारतीय सेना ने कई सारे युद्ध में भी अहम् भूमिका निभायी है 

Thursday, 12 October 2017

फ्लिप्कार्ट कम्पनी की स्थापना किसने की और कब की थी

भारत देश आज तरक्की के रास्ते पर है और भारत में प्रतिभावान लोगों की कोई कमी नहीं है ।

भारत की एक जानी मानी ई कॉमर्स कम्पनी फ्लिप्कार्ट ने आज भारत में अपना व्यापार कई गुना बढ़ा दिया है ।

फ्लिप्कार्ट ने ई कॉमर्स की दुनिया में अपने आप की एक अलग पहचान बना दी है ।

फ्लिप्कार्ट कम्पनी की स्थापना किसने की
फ्लिप्कार्ट कंपनी की स्थापना सचिन बंसल और बिन्नी बंसल द्वारा की गयी थी ।
आज यह कंपनी भारत की प्रमुख ई कॉमर्स कंपनी बन चुकी है ।

फ्लिप्कार्ट कंपनी की स्थापना सचिन बंसल और बिन्नी बंसल ने कब की थी
फ्लिप्कार्ट कंपनी की स्थापना सचिन बंसल और बिन्नी बंसल ने वर्ष 2007 में की थी ।

अक्टूबर 2007 में सचिन बंसल और बिन्नी बंसल ने फ्लिप्कार्ट की स्थापना की थी ।

फ्लिप्कार्ट आज एक बहुत ही बड़ी ई कॉमर्स की कंपनी बन चुकी है और विश्व में अपनी एक अलग पहचान बना चुकी है ।

फ्लिप्कार्ट कंपनी का मुख्यालय कहाँ स्थित है

फ्लिप्कार्ट कंपनी का मुख्यालय बंगलोर में स्थित है ।

फ्लिप्कार्ट के संस्थापक ने कहाँ से पढाई की थी
फ्लिप्कार्ट के संस्थापक सचिन बंसल और बिन्नी बंसल ने इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी दिल्ली से पढाई पूरी की है ।

Saturday, 7 October 2017

लता मंगेशकर का जन्म कब और कहाँ हुआ और लता मंगेशकर को कौन कौन से पुरस्कार मिले है

लता मंगेशकर भारत की जानी मानी गायिका है और उन्होंने अपनी आवाज से सबको प्रभावित किया है ।

आज भी लता मंगेशकर की आवाज को लोग बहुत ही पसंद करते है और सबसे लोकप्रिय गायिका है।

लता मंगेशकर का जन्म कब हुआ
लता मंगेशकर का जन्म 28 सितम्बर 1929 को हुआ ।

लता मंगेशकर का जन्म स्थान कौनसा है
लता मंगेशकर का जन्म इंदौर में हुआ उनके पिता का नाम पंडित दीनानाथ मंगेशकर था ।
लता मंगेशकर का परिवार एक मध्यमवर्गीय परिवार था ।
लता मंगेशकर के पिता भी गायक थे । उनके परिवार के लगभग सभी लोग किसी न किसी रूप से संगीत से जुड़े हुए है।

लता मंगेशकर को कौन कौन से पुरस्कार मिले है
लता मंगेशकर को 1969 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था ।
लता मंगेशकर को 1989 में दादा साहब फाल्के अवार्ड से भी समानित किया गया ।

लता मंगेशकर को 1999 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया ।

लता मंगेशकर को 2001 में भारत का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न दिया गया ।

लता मंगेशकर भारत की सुप्रसिद्ध गायिका है । 

Wednesday, 4 October 2017

लाल बहादुर शास्त्री का जन्म कब और कहाँ था उनके माता पिता का नाम क्या था

लाल बहादुर शास्त्री भारत के जाने माने स्वतंत्रता सेनानी और भारत के जाने माने प्रधानमन्त्री भी थे ।
लाल बहादुर शास्त्री को भारत में सभी लोग बहुत मान सम्मान देते थे ।

लाल बहादुर शास्त्री का जन्म कब हुआ था
लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को हुआ था ।

लाल बहादुर शास्त्री का जन्म कहाँ हुआ था
लाल बहादुर शास्त्री का जन्म मुगलसराय में हुआ था ।

लाल बहादुर शास्त्री भारत के प्रधानमन्त्री रूप में
लाल बहादुर शास्त्री भारत के दुसरे प्रधानमन्त्री थे और उन्होंने अपने कार्यकाल में कई सारे काम किया जिससे उन्होंने सभी भारतवासियों को प्रभावित किया था ।

लाल बहादुर शास्त्री के पिता का नाम क्या था
लाल बहादुर शास्त्री के पिता का नाम मुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव था ।
लाल बहादुर शास्त्री के पिता प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक थे ।

लाल बहादुर शास्त्री की माता का नाम क्या थे
लाल बहादुर शस्त्री की माता का नाम रामदुलारी था ।

लाल बहादुर शास्त्री अपनी साफ छवि के लिए बहुत ही प्रसिद्ध थे ।

लाल बहादुर शास्त्री को सभी भारत वासियों की तरफ से नमन ।

भगत सिंह का जन्म कब और कहाँ हुआ था जाने माता और पिता का नाम क्या था

भगत सिंह भारत के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानियों में से एक ।
भगत सिंह का भारत की आज़ादी में योगदान अमूल्य था । उनके योगदान को कभी भी भुलाया नहीं जा सकता है ।

भगत सिंह का जन्म कब हुआ था

भगत सिंह का जन्म 28 सितम्बर 1907 में हुआ था ।

भगत सिंह का जन्म कहाँ हुआ था

भगत सिंह का जन्म बावली गाँव लायलपुर जिला में हुआ था ।

भगत सिंह के माता और पिता का नाम क्या था

भगत सिंह के माता का नाम विद्यावती कौर था और भगत सिंह के पिता का नाम सरदार किशन सिंह था ।

भगत सिंह ने अपने प्राणों का बलिदान कब दिया था

भगत सिंह ने भारत देश की आज़ादी के लिए अपने प्राणों का बलिदान 23 मार्च 1931 को दिया था ।

भगत सिंह के साथ साथ उस समय राजगुरु और सुखदेव ने भी भारत देश की आज़ादी के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया था ।

हर भारतीय के आत्मा में भारत के क्रांतिकारी और उनके भारत की आज़ादी के लिए किये गए योगदान हमेशा के लिए याद रहेंगे ।
भारत की जनता को भगत सिंह के बलिदान पर गर्व है और हमेशा ही रहेगा ।

भगत सिंह अपने जीवन की छोटी सी उम्र में भी भारत देश के आजादी के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया ।
भगत सिंह ने भारत देश की आज़ादी को अपने जीवन से ऊपर रखा और भारत देश के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया ।

Monday, 25 September 2017

नरेन्द्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री के रूप मे नाम है यह इतिहास

आज नरेन्द्र मोदी को पूरा विश्व जानता है । विश्व में भारत को एक अलग पहचान भी नरेन्द्र मोदी ने ही दिलायीं है ।
वे इसी तरह देश को तरक्की की राह पर आगे बढ़ाने का प्रयास करे ।
आज नरेन्द्र मोदी किसी एक पार्टी के नहीं बल्कि पूरे देश के प्रधानमंत्री हैं।
आज भारत के प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने अपने आप को सिद्ध किया है । आज पुरे भारतवासियों को नरेन्द्र मोदी पर गर्व है ।
नरेन्द्र मोदी का पूरा नाम नरेन्द्र दामोदर दास मोदी है । जनता मोदी जी के नाम को ज्यादा पसंद करती हैं।

नरेन्द्र मोदी का जन्म कब हुआ
नरेन्द्र मोदी का जन्म 17 सितम्बर 1950 को हुआ ।
नरेन्द्र मोदी का जन्म वडनगर गुजरात में हुआ ।
नरेन्द्र मोदी के पिता का नाम दामोदरदास मोदी और माता का नाम हीराबेन मोदी है ।

नरेन्द्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री के रूप में
नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद की शपत 26 मई 2014 में ली थी और उनको शपत उस समय के राष्ट्रपति प्रणब मुख़र्जी ने दिलायी थी ।

नरेन्द्र मोदी के नाम है यह इतिहास
नरेन्द्र मोदी पहले ऐसे प्रधानमंत्री है जिनका जन्म स्वतंत्र भारत में हुआ है । इससे पहले कोई अन्य ऐसे प्रधानमंत्री नहीं जिनका जन्म स्वतंत्र भारत में हुआ था ।

नरेन्द्र मोदी भारत के 15 वे प्रधानमंत्री है ।

नरेन्द्र मोदी ने अपनी नेतृत्व क्षमता से सबको प्रभावित किया और इसी कारण वे विश्व के सबसे शक्तिशाली नेता में से एक है नरेन्द्र मोदी आज विश्व में अपनी छवि से काफी प्रसिद्ध है ।

नरेन्द्र मोदी को पुरे भारतवासियों की तरफ से शुभकामनाएं ।

रामकृष्ण परमहंस की कही एक बात स्वामी विवेकानंद को जिससे उनका जीवन ही बदल गया की घटना

भारत में स्वामी विवेकानंद और उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस को आज हर कोई जानता है । दोनों ने ही भारत का मान बढाया है । बताया है की गुरु किसे कहते है ।
स्वामी विवेकानंद के गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस भी ज्ञानी और शांत स्वभाव के धनी थे ।

रामकृष्ण परमहंस ही स्वामी विवेकानंद के गुरु थे । स्वामी विवेकानंद उनके परम शिष्य थे ।

रामकृष्ण परमहंस की कही एक बात स्वामी विवेकानंद को जिससे उनका जीवन ही बदल गया की घटना

एक समय जब स्वामी विवेकानंद रामकृष्ण परमहंस से कुछ समय के लिए हिमालय में जाकर तपस्या करने की बात की आज्ञा लेने पहुचे तब उनके गुरू रामकृष्ण परमहंस ने उनसे कहा कि ।
हमारे आस पास के क्षेत्र के लोग तो भूख से तड़प रहे है । चारो और अज्ञान का अंधेरा फैला हुआ है लोग रोते और चिल्लाते है और तुम हिमालय की गुफा में समाधी के लिए जाना चाहते हो क्या तुम्हारी आत्मा स्वीकार सकेगी ।

इस बात का सीधा असर स्वामी विवेकानंद पर हुआ और स्वामी विवेकानंद दरिद्र नारायण की सेवा में लग गए ।
रामकृष्ण परमहंस ने सभी धर्मो की एकता पर जोर दिया था और वे मानवता के पुजारी थे ।

रामकृष्ण परमहंस का जन्म कब हुआ था 

रामकृष्ण परमहंस का जन्म नाम गदाधर चटोपाध्याय था ।उनका जन्म 18 फ़रवरी 1836 को बंगाल के कामारपुकुर नामक स्थान पर हुआ था ।
रामकृष्ण परमहंस पिताजी का नाम खुदीराम था । माताजी का नाम चंद्रमणिदेवी था ।

रामकृष्ण परमहंस से जुड़े हुए कुछ प्रमुख विचारक

रामकृष्ण परमहंस बहुत प्रसिद्ध हुए उनसे जुड़ने वाले ईश्वर चन्द्र विद्यासागर विजयकृष्ण गोस्वामी केशवचंद्र सेन आदि नाम है ।
रामकृष्ण परमहंस एक महान योगी थे । उनकी मूर्ति बेलूर मठ में स्थापित की हुई है ।

रामकृष्ण परमहंस भारत के सच्चे आध्यात्मिक गुरू और उनके विचार हमेशा ही जीवित रहेंगे ।

Sunday, 24 September 2017

कश्मीर का दूसरा युद्ध कौनसा है जाने

भारत और पाकिस्तान के बीच हुए 1965 के युद्ध को ही कश्मीर का दूसरा युद्ध के नाम से जाना जाता है ।

भारत और पाकिस्तान का 1965 का युद्ध भारत के बड़े युद्ध में से एक था ।
यह युद्ध भारत और पाकिस्तान के सेनिको के बीच लड़ा गया था ।

भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ 1965 का युद्ध कब तक चला था
भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ युद्ध 1965 के अप्रैल माह से लेकर 1965 के सितम्बर माह तक चला था ।

भारत और पकिस्तान के बीच 1965 के युद्ध कब शुरू हुआ था
भारत और पाकिस्तान के बीच 1965 का युद्ध लगभग 5 अगस्त को शुरू हुआ था उस दिन पाकिस्तान ने भारत की सीमा की तरफ अपने सैनिको को भेजा था ।
भारत की तरफ से इस युद्ध की आधिकारिक घोषणा 6 सितम्बर 1965 को हुई थी ।
वैसे यह युद्ध की गतिविधिया अप्रैल 1965 से शुरू हो चुकी थी ।

भारत और पाकिस्तान के बीच हुए 1965 का युद्ध कब समाप्त हुआ था
भारत और पाकिस्तान के बीच हुए 1965 का युद्ध संयुक्त राष्ट्र संघ की घोषणा के बाद हुआ था ।
भारत और पाकिस्तान के बीच हुए 1965 का युद्ध 23 सितम्बर 1965 को समाप्त हुआ था ।

इस युद्ध की समाप्ति के बाद ही ताशकंद समझोता हुआ इस समझोते के नाम बारे में हर कोई जानता है ।
भारतीय सैनिको ने इस युद्ध में गजब की बहादुरी दिखाई और अपने प्राणों की परवाह किये बिना देश की रक्षा की और दुश्मनों को मुहंतोड़ जवाब दिया था ।

युद्ध में देश के लिए अपने प्राणों का बलिदान देने वाले भारतीय सैनिको को उनकी वीरता के लिए शत शत नमन है ।भारत देश महान देश है ।

Saturday, 23 September 2017

मेघालय राज्य का गठन कब हुआ था और मेघालय राज्य गठन से पहले किस राज्य का हिस्सा था

भारत देश के सभी राज्य की अपनी अलग अलग विशेषता है । सभी राज्य अपनी सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है । चाहे कोई भी राज्य हो सभी भारतीय राज्य अनोखे है । सभी मिलाकर भारत एक है ।

भारत के प्रमुख राज्य मे से एक मेघालय भी अपनी प्राकर्तिक सुंदरता के लिए काफी प्रसिद्ध है । इस राज्य की सुंदरता किसी से छिपी हुई नहीं है ।
मेघालय भारत के उत्तर पूर्व में स्थित है और इसके उत्तर में असम राज्य स्थित है ।

मेघालय राज्य का गठन कब हुआ था
मेघालय राज्य का गठन 21 जनवरी 1972 को हुआ था ।
यह राज्य अपनी एक अलग पहचान बनायी ।

मेघालय राज्य गठन से पहले किस राज्य का हिस्सा था
मेघालय राज्य गठन से पहले असम राज्य का हिस्सा था । मेघालय राज्य की राजधानी शिलांग है ।
मेघालय और असम राज्य को अलग ब्रह्मपुत्र नदी करती यह नदी इन राज्यों से गुजरती है ।
सुंदर जगह है मेघालय और इसकी सुन्दरता का विवरण नहीं किया जा सकता है ।

मेघालय अपनी प्राकतिक सुंदरता पर्यटकों को लुभाती है ।
लोग इन्हें देखकर प्रकति के विहंगम द्रश्य के अभिभूत हो जाते है ।

मेघालय की पहाड़ी भाग अत्यंत ही सुन्दर और लुभावना लगता है ।
मेघालय में वन्यजीवों की कई दुर्लभ प्रजातियाँ जैसे हाथी पांडा आदि मिलती है ।

Thursday, 14 September 2017

मनरेगा का पूरा नाम क्या है और कब अधिनियमित किया गया था

मनरेगा भारत की एक बहुत बड़ी ग्रामीण गारंटी रोजगार योजना है ।

मनरेगा का पूरा नाम क्या है
मनरेगा का पूरा नाम महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम है ।

मनरेगा को कब अधिनियमित किया गया था
मनरेगा को भारत में एक ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना को 25 अगस्त 2005 में अधिनियमित किया गया था । इस दिन से एक कानून बना जिसका नाम महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम 2005 प्रभाव में आया ।

मनरेगा को पहली बार कब शुरू किया गया था

मनरेगा योजना को सबसे पहले 200 जिलो में शुरू किया गया था और 2 फरवरी 2006 को मनरेगा शुरू हुआ था ।

मनरेगा कब पुरे भारत में लागु हुआ
शुरुआत में मनरेगा को केवल 200 जिलो में लागु किया गया और बाद में 2007 और 2008 के मध्य में अन्य 130 जिलो में भी इसको लागु किया गया और बाद में 1 अप्रैल 2008 में मनरेगा को भारत के सभी जिलो में लागु कर दिया था ।

मनरेगा को शुरु करने का क्या उद्देश्य था 
मनरेगा शुरू करने का प्रमुख उद्देश्य यह था की ग्रामीण लोगो की क्रय की शक्ति को बढ़ाना और कौशल पूर्ण और अर्धकौशल पूर्ण लोगो को गारंटी रोजगार प्रधान करना ।

मनरेगा में क्या कार्य करते है
मनरेगा में मुख्य रूप से जल संरक्षण और जल संचयन जंगलो में वृद्धि वृक्षरोपन बाढ़ नियंत्रण तालाबो की खुदाई और छोटे बांधो का निर्माण आदि कार्य किये जाते है ।

मनरेगा को भारत के ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार बढाने के लिए शुरू किया था लेकिन इसमें कहीं कहीं गड़बड़ की भी बीच में खबरे आयी थी जिसने इस व्यवस्था की कमीयां बताई थी ।

भारत में शिक्षक दिवस किस के जन्मदिन पर मनाया जाता है

भारत में शिक्षक दिवस डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन पर मनाया जाता है । सर्वपल्ली राधाकृष्णन भारतीय संस्कृति के जाने माने प्रशंसक थे । सर्वपल्ली राधाकृष्णन प्रसिद्ध शिक्षाविद भी थे ।

सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म कब हुआ था
सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितम्बर 1888 को हुआ था । सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म तिरुटनी गांव मे हुआ था । यह गांव तमिलनाडु में है ।
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था । सर्वपल्ली राधाकृष्णन के पिता का नाम सर्वपल्ली वीरास्वामी था । वे एक निर्धन परन्तु एक विद्वान् ब्राह्मण थे ।
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की माता का नाम सीतामा था ।

सर्वपल्ली राधाकृष्णन भारत के उपराष्ट्रपति के रूप में
सर्वपल्ली राधाकृष्णन भारत के प्रथम उप राष्ट्रपति थे । सर्वपल्ली राधाकृष्णन कार्यकाल 1952 से शुरू हुआ था ।सर्वपल्ली राधाकृष्णन 1962 तक भारत के उपराष्ट्रपति के पद पर रहे ।

सर्वपल्ली राधाकृष्णन भारत के राष्ट्रपति के रूप में
सर्वपल्ली राधाकृष्णन भारत के द्वितीय राष्ट्रपति बने थे । सर्वपल्ली राधाकृष्णन कार्यकाल 1962 से 1967 तक चला था ।

सर्वपल्ली राधाकृष्णन को भारत का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न कब मिला था
सर्वपल्ली राधाकृष्णन को भारत का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न वर्ष 1954 में दिया गया था ।

सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने भारतीय संस्कृति के महत्व को समझा । सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने यह भी जाना की भारतीय संस्कृति में सभी धर्मो का आदर करना सिखाया गया है । सभी धर्मो के लिए समानता का भाव भी हिन्दू संस्कृति की विशिष्ट पहचान है ।

सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन को भारत में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।

Wednesday, 13 September 2017

ओलम्पिक में भारत देश को पदक दिलवाने वाली पहली महिला खिलाड़ी

ओलम्पिक में भारत देश को पदक दिलवाने वाली पहली महिला खिलाड़ी का नाम कर्णम हैं । मल्लेश्वरी जिन्होंने साल 2000 में हुए सिडनी ओलंपिक में भारत देश को पदक दिलवाया था ।
उन्हें आंध्रप्रदेश की आयरन गर्ल भी कहा जाता है ।

कर्णम मल्लेश्वरी ने किस खेल में जीता था भारत देश के लिए पदक
कर्णम मल्लेश्वरी ने महिलाओं के 69 किलो भारतोलन वर्ग में भारत को कांस्य पदक दिलवाया था । यह कांस्य पदक 2000 मे हुए सिडनी ओलंपिक में जीता था । इस तरह कर्णम मल्लेश्वरी भारत की पहली महिला खिलाड़ी बन गयी जिन्होंने ओलंपिक में पदक जीता था ।

कर्णम मल्लेश्वरी का जन्म कब हुआ 
कर्णम मल्लेश्वरी का जन्म 1 जून 1975 को अम्दालावासा श्रीकाकुलम क्षेत्र आंध्रप्रदेश में हुआ था ।

कर्णम मलेश्वरी के कुछ अन्य विश्व स्तर के पदक
1992 में एशियन चैंपियनशिप में 3 रजत पदक जीते थे ।
विश्व चैंपियनशिप में 3 कांस्य पदक जीते थे ।
वर्ल्ड चैंपियनशिप 1994 में 2 गोल्ड मैडल भी जीते थे ।
कर्णम मल्लेश्वरी ने कुल अपने करियर में 11 गोल्ड मैडल जीते है ।

कर्णम मल्लेश्वरी को भारत के कोनसे उच्च सम्मान मिले हैं
अर्जुन पुरस्कार साल 1994 में मिला था ।
1995 में राजीव गाँधी खेल रत्न पुरस्कार मिला था ।
1999 में पद्म श्री पुरस्कार भी कर्णम मल्लेश्वरी को मिला था ।

कर्णम मल्लेश्वरी भारत की शान हैं ।

Saturday, 9 September 2017

भारतीय मूल की जानी मानी उपन्यासकार ने विश्व के सर्वोच्च उपन्यासकार सम्मान में से एक मैन बुकर पुरस्कार जीता

भारतीय मूल की जानी मानी उपन्यासकार किरण देसाई ने विश्व के सर्वोच्च उपन्यासकार सम्मान में से एक मैन बुकर पुरस्कार जीता हैं ।

किरण देसाई का जन्म कब हुआ
किरण देसाई का जन्म 3 सितम्बर 1971 को हुआ । किरण देसाई के माता का नाम अनीता देसाई हैं । अनीता देसाई वो भी जानी मानी उपन्यासकार है ।

किरण देसाई की शिक्षा एवं जीवन का सफर
किरण देसाई अपनी प्रारंभिक शिक्षा भारत में हुई ।
किरण देसाई14 वर्ष की उम्र में उन्होंने भारत छोड़ दिया । किरण देसाई बाद में इंग्लैंड में रहने लगी । किरण देसाई उसके बाद में वे अमेरिका चली गयी और वहां पर उन्होंने क्रिएटिव राइटिंग की पढाई भी पूरी की ।
किरण देसाई भारतीय मूल की अंग्रेजी उपन्यासकार है ।

किस उपन्यास के कारण किरण देसाई को मिला था मैन बुकर पुरस्कार
मैन बुकर पुरस्कार किरण देसाई को उनके उपन्यास जिसका नाम द इनहेरिटेंस ऑफ़ लॉस की वजह से मिला था ।
मैन बुकर पुरस्कार किरण देसाई को 2006 में मिला था ।

इस उपन्यास को इस पुरस्कार के अलावा भी खूब सारे अवार्ड मिले थे जिनमे नेशनल बुक क्रिटिक सर्किल अवार्ड भी शामिल था ।

यह उपन्यास कब पब्लिश हुआ था और इसमें कितने पेज थे
यह उपन्यास 31 अगस्त 2006 को पब्लिश हुआ था । यह उपन्यास तक़रीबन 336 पेज का था ।

आज किरण देसाई पुरी दुनिया में अपनी एक अलग पहचान बनाई है ।

वो भारतीय महिला जो कि हीरोइन ऑफ़ हाईजैक के नाम से पुरे विश्व में प्रसिद्ध हुई ।

नीरजा भनोट वो भारतीय महिला जो कि हीरोइन ऑफ़ हाईजैक के नाम से पुरे विश्व में प्रसिद्ध हुई ।
नीरजा भनोट ने दूसरो के जीवन की रक्षा के लिए अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया था ।

नीरजा भनोट की बहादुरी की क्या घटना थी
मुंबई से जा रहे विमान को आंतकवादियो ने कराची में अपहरण कर दिया । उस समय नीरजा भनोट के जो भी सीनियर थे । मौका देख भाग निकले थे । उस समय नीरजा विमान परिचारिका थी । उन्होंने लोगो को निकालने के लिए इमरजेंसी दरवाजा खोलने का प्रयास किया और वे दरवाजे को खोलने में कामयाब रही और यात्रियों को सुरक्षित निकलने का रास्ता बनाया ।

अगर उस समय नीरजा भनोट चाहती तो वो खुद निकल सकती थी । लेकिन नीरजा ने खुद के पहले यात्रियों की जिंदगी को प्राथमिकता दी । यात्रियों को निकाला लेकिन जब आतंकवादी को पता चला तो उसने तीन बच्चो पर गोली चलाने का प्रयास किया ।
लेकिन उस समय नीरजा बीच में आकर उस आतंकवादी का मुकाबला किया और उस समय उन्हें गोली लगने से नीरजा की मृत्यु हो गयी और वो शहीद हो गयी ।

यह घटना कब घटी थी
यह घटना 5 सितम्बर 1986 को घटी थी ।

नीरजा भनोट को भारत सरकार द्वारा दिया गया सम्मान
नीरजा भनोट को भारत सरकार ने वीरता और साहस के लिए मरणोपरांत अशोक चक्र से सम्मानित किया गया ।
अशोक चक्र भारत का सर्वोच्च शांतिकालीन वीरता पुरस्कार है ।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नीरजा भनोट का नाम हीरोइन ऑफ़ हाईजैक के नाम से प्रसिद्ध हुई । आज भी लोग उनके कारनामे को याद करते है और आगे भी करते रहेंगे ।

नीरजा भनोट के इस बलिदान को याद रखने के लिए 2016 में फिल्म बनी जिसमे नीरजा भनोट का किरदार सोनम कपूर ने निभाया ।

नीरजा भनोट के इस बलिदान को हमेशा याद रखा जाएगा  ।


Monday, 4 September 2017

मदनलाल ढींगरा अंग्रेज अधिकारी को गोली मारने वाले क्रांतिकारी है

मदनलाल ढींगरा अंग्रेज अधिकारी को गोली मारने वाले क्रांतिकारी है । मदनलाल ढींगरा जब इंग्लैंड में पढाई कर रहे थे तब उन्होंने एक अंग्रेज अधिकारी को गोलीयों से उसे मार दिया था ।

मदनलाल ढींगरा का जन्म कब हुआ

मदनलाल ढींगरा का जन्म वर्ष 1883 में हुआ था उनका जन्म अमृतसर में हुआ था । उनके पिता दितामल एक जाने माने सिविल सर्जन थे और वे पूरी तरह अंग्रेजी रूप में ढले हुए थे और उनकी अंग्रेजो में काफी अच्छी जान पहचान भी थी । मदनलाल जी की माता जी भारतीय संस्कृति और संस्कारो की धनी महिला थी ।

मदनलाल ढींगरा लन्दन क्यों और कब गए
मदनलाल ढींगरा 1906 में उच्च शिक्षा पाने के लिए इंग्लैंड चले गए और उन्होंने वहां पर मैकेनिकल इंजीनियरिंग मतलब की यांत्रिकी अभियांत्रिकी में प्रवेश लिया उन्होंने अपनी यह पढाई यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ़ लन्दन में की ।

कब और किस अंग्रेज अधिकारी को गोली मारी
अंग्रेज अधिकारी को गोली मारने का एक कारण यह भी था कि मदनलाल ढींगरा भारतीय क्रांतिकारियों को फांसी की सजा देने से नाराज़ थे ।

1 जुलाई सुन 1909 में इंडियन नेशनल एसोसिएशन के वार्षिकोतस्व में खूब सारे अंग्रेज और भारतीय शामिल हुए थे । उस दौरान मदनलाल ढींगरा ने विलियम हट कर्जन वायली नाम के एक अंग्रेज अधिकारी को गोलियों से मार दिया । उसके बाद मदनलाल ढींगरा ने अपने आप को गोली मारनी चाही परन्तु वे सफल नहीं हो सके और पकड़े गए ।

मदनलाल ढींगरा को कब मिली फांसी की सजा
23 जुलाई 1909 को फांसी की सजा सुनाई गयी और 17 अगस्त 1909 को वे भारत की आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी और सदा के लिए अमर हो गए ।

Sunday, 3 September 2017

भारत में पहली बार मोटर कार रेली उससे जुडी अहम जानकारी


भारत में आज के समय मोटर कार कोई बड़ी बात नहीं है । परंतु कुछ वर्ष पहले तक इसे विलासिता से जोड़ा जाता था ।
आज कल तो मोटर कार की रेसिंग प्रोफेशनल स्तर पर होती है । मोटर कार की रेसिंग देखने भी खूब सारे लोग आते है । पैसा भी बहुत अधिक लग जाता है ।

मोटर कार की रेसिंग में सब तरह की सुविधाए और सुरक्षा का भी पूरा ध्यान रखा जाता है ।
लेकिंन आप को पता है कि भारत में पहली बार मोटर कार की रैली भारत की आज़ादी के काफी वर्ष पहले हो गयी थी ।

भारत में पहली बार कार रेली कब हुई थी
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भारत में पहली बार मोटर कार रैली वर्ष 1904 में 28 अगस्त को हुई थी । मतलब कि आज से तक़रीबन 113 वर्ष पहले भारत में पहली कार रैली हुई थी । यह काफी अधिक पहले हुई रैली हैं ।

भारत में पहली बार मोटर कार रैली कहाँ पर निकली गयी थी
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भारत में पहली बार मोटर कार रैली कलकता शहर से निकाली गयी थी। आज से 113 साल पहले कलकता मे हुई थी ।

भारत में पहली मोटर कार रैली का आयोजन किसने किया था
भारत में पहली मोटर कार रैली जो कि कलकता मे हुई उसका आयोजन ऑटोमोबाइल एसोसिएशन ऑफ़ बंगाल ने किया था ।

पहली मोटर कार रैली कितनी लम्बी थी और कहाँ से कहाँ तक थी
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भारत की पहली मोटर कार रैली 40 किलोमीटर लम्बी थी और यह मोटर कार रैली कलकता से चालु होकर बैरकपुर तक गयी थी ।

इस रैली को उस समय की सबसे प्रसिद्ध रैली माना गया था । यह अपने आप में एक अलग ही उत्साह का विषय था ।

यह मोटर रैली आज भारत का इतिहास है ।




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Tuesday, 29 August 2017

भारत के महानतम खिलाडी मेजर ध्यानचंद सिंह की भारतीय हॉकी से जुडी अहम बातें

भारत के महानतम खिलाडी मेजर ध्यानचंद सिंह भारतीय हॉकी का ऐसा नाम है जिसे हर कोई जानता है । यदि भारत में कोई हॉकी को जानता है तो वह महान खिलाडी मेजर ध्यानचंद को अवश्य ही जानता होगा ।
इसके अलावा और भी बहुत सारे लोग है जो की मेजर ध्यानचंद को जानते है । महान खिलाडी मेजर ध्यानचंद भारत और भारत के बाहर भी बहुत अधिक प्रसिद्ध है । मेजर ध्यानचंद सिंह ने अपनी एक अमिट पहचान बनायी हुई है ।

मेजर ध्यानचंद सिंह का जन्म
भारत के महानतम खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद सिंह का जन्म 29 अगस्त 1905 में हुआ था । मेजर ध्यानचंद सिंह का जन्म भारत के इलाहाबाद में हुआ था ।

मेजर ध्यानचंद सिंह का हॉकी खेल मे खिलाडी के तौर पर
मेजर ध्यानचंद सिंह भारत के महान खिलाडी केवल भारत के हॉकी के श्रेष्ट खिलाडी नहीं थे। बल्कि मेजर ध्यानचंद सिंह पुरे विश्व में हॉकी के सर्वश्रेष्ट खिलाडी मे से एक थे ।
मेजर ध्यानचंद सिंह भारतीय फील्ड हॉकी के खिलाडी और भारतीय टीम के कप्तान भी रहे ।

मेजर ध्यानचंद सिंह हॉकी में किस स्थान पर खेलते थे
मेजर ध्यानचंद सिंह हॉकी में फॉरवर्ड में खेलते थे।

मेजर ध्यानचंद भारत की हॉकी टीम से कब जुड़े
मेजर ध्यानचंद भारत की हॉकी टीम से 1926 से 1948 के बीच की अवधि में जुड़े रहे थे । तब मेजर ध्यानचंद ने बहुत नाम कमाया जो आज तक चल रहा हैं और आगे भी चलता रहेगा ।
मेजर ध्यानचंद सिंह ने भारतीय हॉकी खेल को नयी बुलंदियों तक पंहुचा दिया और विश्व मे हाँकी खेल को एक नयी पहचान दिलाई है ।

मेजर ध्यानचंद सिंह की मृत्यु
भारत के महानतम हॉकी के खिलाडी मेजर ध्यानचंद सिंह की मृत्यु 3 दिसम्बर 1979 को हुई थी ।
उस समय भारत के महान खिलाडी मेजर ध्यानचंद सिंह की उम्र 74 वर्ष थी ।
भारत के महानतम खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद सिंह भारत को विश्व स्तर पर एक अलग पहचान बनायीं और आगे लेकर आये

मेजर ध्यानचंद सिंह पर हमें गर्व है । मेजर ध्यानचंद सिंह का आज जन्मदिन भी है । वे आज भी हर भारतीय के लिए महानतम खिलाडी के रूप में बसे हुए है । हर भारतीय के दिल में मेजर ध्यानचंद के प्रति सम्मान हमेशा बना रहेगा और आगे आने वाले दिनों मे बढता रहेगा ।





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Monday, 28 August 2017

महान क्रांतिकारियों में से ही एक राजगुरु जी के जीवन से जुडी कुछ महत्वपूर्ण बातें

आज भारत देश के सभी लोगो को पता है की कैसे श्री भगत सिंह और श्री राजगुरु और श्री सुखदेव ने भारत की आजादी के लिए फांसी तक को भी स्वीकार कर लिया । अपने प्राणों की परवाह किये बिना 23 वर्ष की छोटी सी उम्र में अपने प्राणों का बलिदान भारत देश की आज़ादी के लिए दे दिया ।

इन तीनो महान क्रांतिकारियों में से ही एक राजगुरु जी के जीवन से जुडी कुछ महत्वपूर्ण बातें ।

महान क्रांतिकारी राजगुरु का जन्म कब हुआ
भारत के महान क्रांतिकारी राजगुरु का जन्म हिंदी तिथि के अनुसार भाद्रपद के कृष्णपक्ष की त्रियोदशी तिथि को हुआ था ।  उस समय विक्रम संवत 1965 था । उस हिसाब से उनका जन्म 24 अगस्त 1908 में हुआ था ।
राजगुरु का जन्म खेडा गाँव में हुआ था जो की पुणे जिले में आता है ।

महान क्रांतिकारी राजगुरु का पूरा नाम क्या था
राजगुरु का पूरा नाम शिवराम हरि राजगुरु था वे भारत के प्रमुख एवं महान क्रांतिकारियों में से एक थे ।

महान क्रांतिकारी राजगुरु की शिक्षा
महान क्रांतिकारी राजगुरु केवल 6 वर्ष की उम्र में ही घर छोडकर राजगुरु वाराणसी संस्कृत सीखने और विद्या ग्रहण करने के लिए आ गए थे । इतनी छोटी उम्र में उन्होंने घर छोड़ दिया था और शिक्षा के लिए काशी आ गये थे ।
महान क्रांतिकारी राजगुरु वेद और धर्म ग्रंथो का भी अध्ययन किया था ।
राजगुरु छत्रपति शिवाजी के बहुत बड़े प्रशंशक थे । राजगुरु को व्यायाम करना बहुत पसंद था ।

राजगुरु का भारत की आजादी के लिए संघर्ष 
राजगुरु जब शिक्षा ले रहे थे उसी दौरान राजगुरु क्रांतिकारियों के संपर्क में आये । वे हिन्दुस्थान सोशलिस्ट पार्टी से भी जुड़े।
इस पार्टी में राजगुरु को रघुनाथ नाम से जाना जाता था ।

राजगुरु को फांसी की सजा कब हुई थी
महान क्रांतिकारी राजगुरु को फांसी की सजा 23 मार्च 1931 को महान क्रांतिकारी भगत सिंह और महान क्रांतिकारी सुखदेव के साथ लाहौर के सेंट्रल जेल में दी गयी थी ।
उस दिन भारत की आज़ादी के लिए इन महान क्रांतिकारीयों ने अपने प्राणों का बलिदान दे दिया ।

भारत के इस महान क्रांतिकारी योद्धा को हमारा शत् शत् नमन हैं । वे आज भी हर भारतीय के लिए अमर है और हमेशा ही अमर रहेंगे ।




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Saturday, 26 August 2017

भारत का सबसे लंबा केबल पर टिका पुल

भारत का सबसे लंबा केबल पर टिका पुल कलकता का विधासागर सेतू है । विधासागर सेतू पुल हुगली नदी पर बनाया गया है।
इस पुल का नाम विद्यासागर सेतु एक महान पंडित ईश्वर चंद्र विद्यासागर के नाम पर पड़ा जो की एक जाने माने शिक्षाविद और समाजसेवी थे ।

पंडित ईश्वर चंद्र विद्यासागर का जन्म
पंडित ईश्वर चंद्र विद्यासागर का जन्म पश्चिम बंगाल में हुआ था। और उनका बचपन का नाम ईश्वर चंद्र बंदोपाध्याय था ।

विद्यासागर की उपाधि किस लिये मिली थी
पंडित ईश्वर चंद्र विद्यासागर उच्च कोटि के विद्वान थे । इसी कारण से उन्हें अपनी विद्वता के लिए ही विद्यासागर की उपाधि मिली थी ।

पंडित ईश्वर चंद्र विद्यासागर किस कारण से इतने लोकप्रिय हुए
पंडित ईश्वर चंद्र विद्यासागर एक समाजसेवक थे । पंडित ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने नारी शिक्षा को बढावा दिया था। पंडित ईश्वर चंद्र विद्यासागर कलकता में बहुत सारे बालिका विद्यालयों की स्थापना भी की थी ।
विद्यासागर एक दार्शनिक और शिक्षाशास्त्री लेखक अनुवादक और मुद्रक आदि थे । पंडित ईश्वर चंद्र विद्यासागर संस्कृत भाषा को बढ़ावा दिया और उसका प्रचार प्रसार भी किया ।
उन्होंने बांगला भाषा को भी बढावा दिया था ।

इस तरह पंडित ईश्वर चंद्र विद्यासागर जो की एक समाजसेवी उनके नाम पर भारत के इस सबसे लम्बे केबल पर टिकें पुल का नाम पड़ा है ।




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मद्रास शहर के नाम के पीछे का कारण क्या हैं और उससे जुड़ी कहानी

मद्रास शहर जो की अब तो चेन्नई के नाम से पहचाना जाता है । परन्तु चेन्नई का पुराना नाम मद्रास था । मद्रास का यह नाम केसे पडा था इसकी भी कुछ एक कहानी है । जो की इस प्रकार हैं ।
मद्रास के नाम के कारण में काफी सारे मतभेद है । कोई मद्रास नाम की कुछ कहानी सुनाता है । तो कोई कुछ उनमे से कुछ कहानियाँ इस प्रकार है ।

मद्रास के नाम के पीछे का कारण क्या हैं और उससे जुड़ी कहानी
मद्रास शहर का नाम एक मछली पकड़ने वाले गाँव के नाम पर पड़ा है । उस गाँव का नाम मद्रासपट्टीनम है । इस तरह मद्रास शहर का नामकरण मद्रासपट्टीनम गाँव के नाम पर हुआ हैं।
अंग्रेजो के मानचित्र के अनुसार मद्रास मूल रूप से मुन्दिर राज थे ।

विजयनगर युग के अहम शिलालेख जो की वर्ष 1367 के है ।उन शिलालेख मे भी मादरसन पट्टणम नाम के बंदरगाह के बारे में लिखा है ।
इस पुराने शिलालेख ने मद्रास नाम की उत्पत्ति कहां से हुई इस बात की काफी हद तक पुष्टि कर दी है ।

एक और कहानी मद्रास शब्द की उत्पति कहाँ से हुई और क्या अर्थ है
एक कहानी ऐसी भी है जिसमे कहा जाता है कि मद्रास शब्द की उत्पति पुर्तगाली शब्द से हुई है ऐसा कुछ लोगों का मानना हैं ।
उन लोगों का कहना है कि मद्रास शब्द की उत्पति मैए डी डिस नामक पुर्तगाली वाक्य से हुई है । उस पुर्तगाली वाक्य का अर्थ है भगवान् की माँ ।

एक और रोचक और मजेदार कहानी है जो की मद्रास के नामकरण से सम्बंधित
एक कहानी यह भी है कि ऐसा माना जाता है की मद्रास शहर का नाम एक पुर्तगाली ऑफिसर था । जिसका नाम माद्रे डी सॉइस था । उसके नाम पर मद्रास शहर का नाम पड़ा है । क्योंकि वह ऑफिसर यहाँ रहने वाले पहले लोगों में शामिल था । वह आँफिसर वर्ष 1550 में यहाँ आकर रहा था । मद्रास के नामकरण का यह भी एक कारण हो सकता है ।

मद्रास आज भारत के चार मेट्रो शहरों में से एक है और अपनी एक अलग ही पहचान बनायी हुई है । मद्रास दक्षिण भारत का सबसे बड़ा शेक्षिक सांस्कृतिक और आर्थिक केंद्र भी है ।
मद्रास के नाम का जो भी कारण हो पर सारे ही रोचक है और अपना एक इतिहास लिए हुए है । यह सारे कारण रोचक और मजेदार है ।




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Thursday, 24 August 2017

भारत के राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे की डिज़ाइन

भारत के राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे की डिज़ाइन भारत के एक जाने माने स्वतंत्रता सेनानी जिनका नाम पिंगली वेंकैया था । उन्होंने तिरंगे के डिज़ाइन को बनाया था । 
भारत के राष्ट्रीय ध्वज के डिजाइन के निर्माण में पिंगली वेंकैया का योगदान
1916 से 1921 तक विभिन्न प्रकार के झंडों का अध्ययन किया और वेंकैया ने दो रंग लाल और हरे रंग का ध्वज बनाया पर इसको अधिकारिक स्वीकृति नहीं मिली ।
इस दौरान हंसराज जो की जालंधर के रहने वाले थे उन्होंने ध्वज में चक्र बनाने का सुझाव दिया ।
इसके बाद पिंगली वेंकैया ने चक्र को भी ध्वज में शामिल किया इस दौरान उन्हें सफ़ेद रंग को ध्वज में शामिल करने का सुझाव महात्मा गाँधी ने दिया और इसके बाद पिंगली वेंकैया ने सफ़ेद रंग को भी ध्वज में शामिल कर दिया था । 
1931 में कराची में अखिल भारतीय सम्मेलन में सबकी सहमति से केसरिया रंग और सफेद रंग और हरे रंग को स्वीकृत किया गया । बाद में इस राष्ट्रीय ध्वज पर चरखे की जगह अशोक चक्र लगाया गया ।
पिंगली वेंकैया का जन्म
पिंगली वेंकैया का जन्म 2 अगस्त 1876 में भाटलापेंनुमारू नामक स्थान पर हुआ था यह जगह मच्लिपटनम क्षेत्र में आती है जो की आंद्रप्रदेश का भाग है ।
पिंगली वेंकैया तेलुगु ब्राह्मण कुल नियोगी से सम्बंधित थे ।
पिंगली वेंकैया की शिक्षा
पिंगली वेंकैया ने अपनी हाई स्कूल मच्लिपटनम से पूरी की ।
बाद में उन्होंने आगे की शिक्षा उन्होंने कोलम्बो से पूरी की । बाद में उर्दू और जापानी भाषा का अध्यन करने वे लाहोर चले गए थे । 
पिंगली वेंकैया किन किन विषयों के जानकार थे
पिंगली वेंकैया को कई सारे विषयों के जानकार थे।
भूविज्ञान का बहुत अच्छा ज्ञान था वह हीरे की खानों के विशेषज्ञ थे ।
उन्हें कृषि क्षेत्र का भी काफी ज्ञान था ।
भारत का राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा जो की आज हर भारतीय की शान है की डिजाईन पिंगली वेंकैया बनायीं ।




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